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आ तं भ॑ज सौश्रव॒सेष्व॑ग्नऽउ॒क्थऽउ॑क्थ॒ऽआभ॑ज श॒स्यमा॑ने। प्रि॒यः सूर्ये॑ प्रि॒योऽअ॒ग्ना भ॑वा॒त्युज्जा॒तेन॑ भि॒नद॒दुज्जनि॑त्वैः ॥२७ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आ। तम्। भ॒ज॒। सौ॒श्र॒व॒सेषु॑। अ॒ग्ने॒। उ॒क्थउ॑क्थ॒ इत्यु॒क्थेऽउ॑क्थे। आ। भ॒ज॒। श॒स्यमा॑ने। प्रि॒यः। सूर्ये॑। प्रि॒यः। अ॒ग्ना। भ॒वा॒ति॒। उत्। जा॒तेन॑। भि॒नद॑त्। उत्। जनि॑त्वै॒रिति॒ जनि॑ऽत्वैः ॥२७ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:12» मन्त्र:27


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर भी वही विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) विद्वन् पुरुष ! आप जो (सौश्रवसेषु) सुन्दर धनवालों में वर्त्तमान हो, (तम्) उसको (आभज) सेवन कीजिये, जो (शस्यमाने) स्तुति के योग्य (उक्थऽउक्थे) अत्यन्त कहने योग्य व्यवहार में (प्रियः) प्रीति रक्खे (सूर्य्ये) स्तुतिकारक पुरुषों में हुए व्यवहार (अग्ना) और अग्निविद्या में (प्रियः) सेवने योग्य (जातेन) उत्पन्न हुए और (जनित्वैः) उत्पन्न होनेवालों के साथ (उद्भवाति) उत्पन्न होवे और शत्रुओं को (उद्भिनदत्) उच्छिन्न-भिन्न करे, (तम्) उसको आप (आभज) सेवन कीजिये ॥२७ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को चाहिये कि जो पाक करने में साधु, सब का हितकारी, अन्न और व्यञ्जनों को अच्छे प्रकार बनावे, उसको अवश्य ग्रहण करें ॥२७ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(आ) (तम्) (भज) सेवस्व (सौश्रवसेषु) शोभनानि च श्रवांसि च तानि सुश्रवांसि तेषु सुश्रवस्सु भवास्तेषु (अग्ने) विद्वन् (उक्थऽउक्थे) वक्तुं योग्ये योग्ये व्यवहारे (आ) (भज) (शस्यमाने) स्तूयमाने (प्रियः) कान्तः (सूर्य्ये) सूरिषु स्तोतृषु भवे (प्रियः) सेवनीयः (अग्ना) अग्नौ (भवाति) भवेत् (उत्) (जातेन) (भिनदत्) भिन्द्यात् (उत्) (जनित्वैः) जनिष्यमाणैः ॥२७ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे अग्ने विद्वन् ! त्वं यः सौश्रवसेषु वर्त्तमानस्तमाभज, यः शस्यमान उक्थऽउक्थे प्रियः सूर्येऽअग्ना च प्रियो, जातेन जनित्वैः सहोद्भवात्युद्भिनदत्, तं त्वमाभज ॥२७ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैर्यः पाककरणे साधुः, सर्वस्य प्रियोऽन्नव्यञ्जनानां भेदकः पाचको भवेत्, स स्वीकर्त्तव्यः ॥२७ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांनी हितकारक अन्न व वेगवेगळे खाद्यपदार्थ चांगल्या प्रकारे बनविणाऱ्या व उत्तम स्वयंपाक करणाऱ्यांचा स्वीकार करावा.